बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा
धूप में नहाई हुई रात से सामना होगा
खुद में दबाए हुए जज़्बात से सामना होगा
जाने पहचाने मुखौटों में मिलेंगे सारे अजनबी
फिर ग़मों का हँसी की बरसात में सामना होगा
बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा।
फिर मुझे अपना अक्स दिखेगा किसी के अन्दर
फिर उमड़ेगा भावनाओं का किसी के लिए दिल में समन्दर
फिर मुझे दिल पे किसी आघात का सामना होगा
बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा।
दोस्ती में छुपी अदावत से सामना होगा
रोज अपनों की बग़ावत से सामना होगा
मंजिल की होड़ में दौड़ती लाशों से सामना होगा
फिर रकीबों से हसीं मुलाकात में सामना होगा
बाहर निकलूँगा तो फिर उन्हीं हालात से सामना होगा।