जो सींचा है अब तक वो शज़र दे रहा हूँ,
मैं खुद को ग़ज़ल में शरण दे रहा हूँ।
जो अब तक थी दिल में वो दिल ही ने जानी,
दुनिया को नहीं दी ज़रा भी निशानी,
सबके पूर्वाग्रहों में खलल दे रहा हूँ,
मैं खुद को ग़ज़ल में शरण दे रहा हूँ।
दुनिया के भ्रम को तो पाला था अब तक,
सबकी नज़रों से खुद को छुपाया था अब तक,
धीरे-धीरे मैं खुद को शकल दे रहा हूँ,
मैं खुद को ग़ज़ल में शरण दे रहा हूँ।