मुखौटे एक-एक कर उतरने लगे हैं, ओ दुनिया तुम्हें हम समझने लगे हैं। आँखों में अदावत और हाथों का मिलना, रवायत नई, अब समझने लगे हैं। बेतकल्लुफ़ी से मिलते थे सब, अब पहले मिज़ाज परखने लगे हैं। नई फिज़ा है निज़ाम की अब, सच बोलने वाले सब खटकने लगे हैं। भटकते थे पहले अंधेरे में लोग, अब चकाचौंध में राह भटकने लगे हैं।
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21 फरवरी