सोचकर चले थे कि रस्ता छोटा है…

मर्ज़ जब लाइलाज़ होता है,
तभी क्यों जमकर इलाज़ होता है?

कश्ती चलाने को बादवाँ* काफी था,
नाखुदा* क्यों सवार होता है?

ज़िन्दा रहने पर शोक करते हैं लोग,
यहाँ मर जाने पर मल्हार होता है।

पुकार-पुकार के थक गया तुझको,
क्या सच है कि खुदा सोता है?

तुझे और सिर्फ तुझे चाहा किया,
तुझे पाकर ये यकीं नहीं होता है।

ये कैसा मोड़ है ज़िन्दगी तेरा,
यहाँ हर आदमी क्यों रोता है?

हर एक आँख का निशाना है जो,
वो आँख खोलकर आज सोता है।

मृग मरीचिकाओं से हूँ घिरा हुआ,
अब मेरी आँख भी एक धोखा है।

नए दौर में हो जाएगा नीलाम,
सम्भालकर रखना जो सिक्का खोटा है।

बहुत दूर निकल आए अपने घर से हम,
सोचकर चले थे कि रस्ता छोटा है।

*बादवाँ= पाल (जिससे हवा के सहारे नाव चलती है)
*नाखुदा= नाविक

5 responses to this post.

  1. ज़िन्दा रहने पर शोक करते हैं लोग,
    यहाँ मर जाने पर मल्हार होता है।

    एक और सुन्दर गज़ल से रुबरु करा दिया आपने।

    प्रतिक्रिया

  2. मर्ज़ जब लाइलाज़ होता है,
    तभी क्यों जमकर इलाज़ होता है?..बहुत खूब

    प्रतिक्रिया

  3. Posted by विवेक कुमार on सितम्बर 15, 2023 at 11:07 पूर्वाह्न

    वाह क्या बात हैं, बहुत ख़ूब कहा आपने।
    जिंदगी की हकीकत बयां करती हर एक पंक्ति।💐

    प्रतिक्रिया

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